यदि योगेंद्र रस का सेवन बिना विशेषज्ञ की सलाह के किया जाए तो कुछ दुष्प्रभाव हो सकते हैं:
Parvatasana – It's greatly effective in managing paralysis by strengthening the nervous program and the muscles. Parvatasana which interprets to Mountain pose assists in restraining paralytic parts of your body by stretching the spinal twine, abdomen and muscle arms.
It truly is talked about in the classical texts that this formulation functions as being a Yogavahi—a catalyst that carries the therapeutic influence deep into the Dhatus (tissues)—and has the ability to eliminate all Roga Samuha (clusters of ailments).
उन्माद, हिस्टीरिया    ब्राह्मी व जटामांसी के क्वाथ के साथ
Don’t be concerned, modern-day high-quality controls and professional Ayurvedic processing make certain its security when taken appropriately. Although the idea of mercury in drugs could possibly seem stunning, in Ayurveda the metals are detoxified by means of elaborate procedures named Shodhana and Marana, making them bio-available and fewer harmful.
जानिए योगेन्द्र रस के फायदे, बनाने की विधि, मात्रा और रोगों में उपयोग। यह एक शक्तिशाली आयुर्वेदिक औषधि है जो वात-पित्त रोगों, प्रमेह, पक्षाघात, मानसिक रोगों आदि में अत्यंत Yogendra Ras लाभकारी है।
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इसमें हृदयवर्धक गुण होने के कारण यह हृदय को सशक्त बनाती है और हृदय गति की संकोचन-विकसन प्रक्रिया को संतुलित करती है, जिससे स्पंदन संख्या में भी स्थिरता आती है। यह रक्त में विद्यमान विषैले तत्वों और रोगजनक कीटाणुओं का नाश करके रक्तकणों की वृद्धि में सहायक होती है। परिणामस्वरूप, यह औषधि रोगों के शमन के साथ-साथ शारीरिक बल में भी वृद्धि करती है।
कृपया योगेंद्र रस का असली प्रभाव देखने के लिए या तो विधिपूर्वक खुद दवाई तैयार करें या किसी भरोसेमंद फार्मेसी से दवाई प्राप्त करें।
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सभी रोगों का नामाकरण करना सम्भव नहीं हो…
हृदय से संबंधित रोगों में योगेंद्र रस का प्रभाव
यह रसायन अनेक रोगों में बेहद चमत्कृत लाभ दिखलाता है लेकिन नीचे दिए कुछ रोगों में रोगी की अवस्था को देखकर वातपित्तोत्तरावस्था में इस दवाई का प्रयोग आश्चर्य चकित करने वाला सिद्ध हो चुका है।
यह औषधि विशेष रूप से हृदय, मस्तिष्क, मन, वातवहन नाड़ियों और रक्त पर प्रभावकारी मानी जाती है। यह पाचन और मूत्र संस्थानों पर भी सकारात्मक असर डालती है। इसके सेवन से वातवह नाड़ियाँ सबल होती हैं, जिससे जीर्ण वातविकार के साथ पित्तप्रकोपजन्य लक्षण जैसे जलन, व्याकुलता, अनिद्रा, मुख में छाले या अपच आदि में विशेष लाभ होता है। अपस्मार, उन्माद और पुराने वात रोगों में भी इसका निःसंकोच प्रयोग किया जाता है।